राम जैसा महानायक

 
वाल्मीकि! लौट आओ फिर कुटी में
रचने दुबारा राम का पावन कथानक

नीर रक्तिम हो गया तमसा नदी का
तीर तट पर विष भरे टूटे पड़े हैं
अब न कोई रुदन सुनता क्रौंञ्ची का
स्रोत करूणा के सभी सूखे पड़े हैं
हे ऋषे! तप-ध्यान से बाहर निकल कर
दृश्य तो देखो जगत के ये भयानक

आस्था के पाँव में जकड़ी जंजीरें
और विश्वासों के कर में हथकड़ी है
वो तुम्हारें राम की स्वर्णिम अयोध्या
कैद में कानून के बेबस पड़ी है
इससे पहले कि भरोसा टूट जाये
थाम लो ये डोर साँसों की अचानक

विश्व हित में फिर रचो आदर्श नूतन
हर ह्रदय में प्रेम की गंगा बहा दो
फिर नये जयघोष से गूँजे दिशाएँ
स्वर नये संकल्प के मन में जगा दो
दिव्य दृष्टि से उतारों हे मुने! फिर
इस धरा पर राम जैसा महानायक

- मधु शुक्ला
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

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