गुहार

 
राम राम तो रटते देखा
बनना उन-सा आया ना
रामराज्य की सुनीं गुहारें
अर्थ समझ तो पाया ना

लोभ मोह की पडीं बेड़ियाँ
मर्यादा लाचार हुई
भाई भाई खड़े कचहरी
आँगन देहरी नपी सुई
लछमन कहे भरत से भैया!
ऐसा कलजुग भाया ना

भरी पड़ी शबरी की डलिया
केवट नैया पार खड़ी
मुँहबोले रिश्तों की पोथी
जाने कब से बंधी पड़ी
परमारथ में स्वारथ घुलता
सेवा भाव सुहाया ना

एक किनारे पर है जनता
दूजे खेवनहार खड़े
बीच समन्दर आदर्शों का
प्रभु सा उद्यम कौन करे
पत्थर पत्थर पूछे सबसे
सेतू क्यों बन पाया ना
राम राज्य की लगी गुहारें
राम राज्य तो आया न

- शशि पाधा  
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

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