आओ हे राम धनुर्धारी

 
आओ हे राम धनुर्धारी !

मधुऋतु धरती का महामिलन
जल-रेत-खेत, बन-बागन में
घुटनों के बल फिर से रेंगों
दशरथ के सूने आँगन में

विश्वामित्र कहें न कहें
खुद करो यज्ञ की रखवारी
आओ हे राम धनुर्धारी

पत्थर की मूर्ति अहिल्याएँ
दाँयें बाँयें चलती-फिरती
बन गयीं स्वयं ये उर्वशियाँ,
शापित होतीं तब तो तरतीं

बेकार चरण रज मत करना
चाहे जितनी हो लाचारी
आओ हे राम धनुर्धारी

फिर पुष्प-वाटिका, धनुषभंग
वरमाल डाल हो सीय-संग
पर कैकेयी बदनाम न हो
तुम खोज निकालो नया ढंग

जंगल जाओ सीता लेकर
लक्षमन भी हो आज्ञाकारी
आओ हे राम धनुर्धारी

सोने के हिरन न मोहें मन
तो सीताहरण असम्भव है
हनुमान मिलें बलि-दूत बने
वृद्धाश्रम शबरी सम्भव है

करबद्ध निवेदन है इतना
प्रभु रहना जूठ फलाहारी
आओ हे राम धनुर्धारी

सूखे रग में पौरुष जागे
सागर नतमस्तक हो आगे
हर बाल वृद्ध हो हनूमान
दहके लंका रावन भागे

अब ऐसा बाण चढ़े धनु पर
मिट जाये हर अत्याचारी ।
आओ हे राम धनुर्धारी !

- उमा प्रसाद लोधी  
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

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