कुण्डलिया

 
  फिर से आओ राम जी, तुम्हें पुकारे देश
मर्यादा के मनुष में, चिह्न नहीं अब शेष
चिह्न नहीं अब शेष, भुला दी संस्कृति अपनी
रही साथ मद, लोभ, स्वार्थ की माला जपनी
काटो तम का जाल, ज्ञान का दीप जलाओ
तुम्हें पुकारे देश, राम जी! फिर से आओ

कलियुग में श्री राम से, पुत्र कहाँ हैं आज
पित्राज्ञा से वन गमन, किया छोडकर ताज
किया छोडकर ताज, राजसी साधन त्यागे
लखन सिया कर जोड़, चल दिये आगे-आगे
वैसे भार्या, भ्रात, कहाँ हैं अब इस युग में
रिश्ते-नाते, प्रेम, खो गए सब कलियुग में

भारत भू पर राम थे, त्रेता युग अवतार
करने आए भूमि पर, दुष्टों का संहार
दुष्टों का संहार, स्वयं को जन से जोड़ा
सिय का थामा हाथ, धनुष शिवजी का तोड़ा
नवमी तिथि पर पर्व, चैत्र में मनता घर-घर
जन्मे थे श्री राम, इसी दिन भारत भू पर

तुलसी की चौपाइयाँ, घर-घर के हों गीत
पुरुषोत्तम श्री राम की, जोड़ें मन से प्रीत
जोड़ें मन से प्रीत, राम धुन हर दिन गूँजे
रामायण को शुद्ध, हृदय से जन-जन पूजे
होगा सुख कल्याण, दृष्टि से समदरसी की
भाव, भावना, भक्ति, अनुसरित हो तुलसी की

भव के द्वारे बंद कर, अंतर के पट खोल
समाधिस्थ हो राम की, एक बार जय बोल
एक बार जय बोल, स्वर्ग के द्वार खुलेंगे
मृत्युलोक से दूर, दैव्य से आप जुड़ेंगे
कहनी इतनी बात, राम जी सबको तारे
अंतर के पट खोल, बंद कर भव के द्वारे

कोरोना से देश मे फैला ऐसा रोग
राम नाम का जाप भी भूल चुके हैं लोग
भूल चुके हैं लोग रामनवमी हतप्रभ है
घोर आइसोलेशन में, जीवन, जगती, नभ है
कहनी इतनी बात, न डर से है कुछ होना
करें जतन ज्यों भाग, जाय कातिल कोरोना

- कल्पना रामानी
१ अप्रैल २०२०

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