धर कर तुम अवतार

 
  युग बीते देखी नहीं
सुछवि राम करतार
आना धरकर तुम अवतार

धरती को जब रचा आपने
अति मनमोहक रंग भरे
शैल सरोवर सरिता सागर
अनुपम सारे अंग खरे

ना जाने किस कारण फिर 
बंजर हुई बहार
आना धरकर तुम अवतार

पतझड़ के पत्तों जैसा
यह जीवन बिखर गया है
जिस पर दृष्टि बिना डाले
हर कोई कुचल गया है

शिलाखंड़ से जीवन का
करने को उद्धार
आना धरकर तुम अवतार

लक्ष्यहीन-सा विचर रहा है
पस्त त्रस्त हो मानव
कोविद बनकर सूक्ष्म रूप में
घूम रहे हैं दानव

मिले त्राण हों असुर विदा
रुके शीघ्र संहार
आना धरकर तुम अवतार

- ओंम प्रकाश नौटियाल
१ अप्रैल २०२०

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