रघुनंदन वंदन

 
शुभदर्शन
रघुनन्दन वंदन

आँगन कनक-भवन
आरतियाँ गूँजें मंगलगान
ऋषिकुल के मंत्रोच्चार-सा उतरा
आज विहान

कंजनयन
करुणाघन वंदन

मधु उमंग सोहति
निशि-वासर कुसुमित नर्म शिरीष
संग तुम्हें पाकर विभोर हैं जनगण
त्रिभुवन-ईश

सुखवर्षण
दुःखभंजन वंदन

बन्धन बिसराए
करते हैं पिंजरे रामरटन
भक्ति रमी तरु गोद गिलहरी
मानस-पारायण

मनरंजन
भवतारण वंदन !

-- अश्विनी कुमार विष्णु
२२ अप्रैल २०१३

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