रामजी, भारत की भू पर

 

रामजी, भारत की भू पर, फिर से आओ एक बार।
रोग दोषों को पुनः, जड़ से मिटाओ एक बार।

फन उठाए फिर रहे हैं, नाग विषधर देश में,
विष भी अमृत बन सके, वो शर चलाओ एक बार।

जो मुखौटे ओढ़ फिरते हैं, तुम्हारे नाम के,
उनके मन में ‘राम’ अंकित, कर दिखाओ एक बार

पापियों के पाप से, मैली हुई मन्दाकिनी,
धनुर्धारी! धार गंगा, की बचाओ एक बार।

भूल बैठीं, त्याग तप को, आजकल की नारियाँ,
याद सीता की उन्हें, फिर से दिलाओ एक बार।

सुत हुए साहब विदेशी ,घर में वनवासी पिता,
हे दयामय! वन को फिर, गुलशन बनाओ एक बार।

वेद की गूँजें ऋचाएँ, यज्ञ हों पावन जहाँ,
वो अयोध्या सत्य की, फिर से बसाओ एक बार।

कल्पना रामानी
२२ अप्रैल २०१३

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