बने तो कोई राम

 
जीवन अपना जब हुआ मात पिता के नाम
नगरी नगरी हुई अयोध्या
बच्चा बच्चा राम

रामचंद्र की
मर्यादा में भरत के जैसा भाई मिले
राजमहल घर अपना है जब लक्ष्मण-सी तरुणाई मिले
और आँगन की उछल कूद है
शत्रुघन के नाम

आखिर कैसे ?
संबंधों की पड़ी खोखली नींव
राम के जैसा हाथ बढ़े तब मित्र मिले सुग्रीव
हो अनजान डगर फिर भी बन जाते
बिगड़े काम

आज मंथरा
खाली बैठी बिना बात के लड़ते भाई
कैसे दूँ वनवास किसी को सोच रही है कैकई माई
सौ सौ शीश हुए रावन के
बने तो कोई राम

राम नाम की
बुनी चदरिया गाते गीत कबीर
ताने बाने में ही उलझे राजा रंक फकीर
हुआ सबेरा जीवन का तो
निश्चित होगी शाम

-नितिन जैन
२२ अप्रैल २०१३

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