राम का दर्श विहंगम

 



राम का दर्श विहंगम है, यहि मूरति पे हर दृष्टि गड़ी है
प्रेम-सुधा संजीवनी है, मनुजों के लिए नित नेह लड़ी है,
अभिमोचक है सुमिरन ही सदैव, कोई जो अतीव विपत्ति पड़ी है,
मृदुला, मधुरा, मनमोहिनी है, छवि कैसी नगीने के जैसी गड़ी है !



राम का नाम सदैव ही सार्थक, राम के नाम की महिमा बडी है
मानव का पथ -दर्शक नाम है, जीवन-मृत्यु के बीच कड़ी है
राम के रूप अनेक, अनेक, प्रत्येक पै सृष्टि समष्टि खड़ी है
राम का नाम सहाय्य सदा चाहे हर्षमयी या दु:खों की घड़ी है

-प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
२२ अप्रैल २०१३

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