वसंती हवा

आज हैं केसर रंग रंगे वन
गिरिजा कुमार माथुर

 

आज हैं केसर रंग रंगे वन
रंजित शाम भी फागुन की खिली खिली
पीली कली-सी
केसर के वसनों में छिपा तन
सोने की छाँह-सा
बोलती आँखों में
पहले वसंत के फूल का रंग है।
गोरे कपोलों पे हौले से आ जाती
पहले ही पहले के
रंगीन चुंबन की सी ललाई।
आज हैं केसर रंग रंगे
गृह द्वार नगर वन
जिनके विभिन्न रंगों में है रंग गई
पूनो की चंदन चाँदनी।

जीवन में फिर लौटी मिठास है
गीत की आख़िरी मीठी लकीर-सी
प्यार भी डूबेगा गोरी-सी बाहों में
होठों में आँखों में
फूलों में डूबे ज्यों
फूल की रेशमी रेशमी छाहें।
आज हैं केसर रंग रंगे वन।

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