| फागुन हँसता, झूमता, लिए हाथ में चंग।मन के भीतर छिड़ गई, एक अनोखी जंग।।
 सरसों फूली हौस में, भौंरे गाते गान।टेसू रागों में रंगे, चले काम के बान।।
 प्रकृति नई दुल्हन बनी, हुए रंगोली खेत।भीगी मीठे प्यार से, पगडंडी की रेत।।
 बदरा से चारों तरफ़, उड़े अबीर-गुलाल।पग-पग पर बिखरे दिखें, रंग-बिरंगे ताल।।
 आँगन में झाँझर मुखर, चौपालों पर गीत।भाव-जगे सपने जगे, मन में उमड़ी प्रीत।।
 नयना मतवारे भए, मन में दहकी आग।फागुन आया प्रिय नहीं, कैसे खेलें फाग।।
 किसने मला गुलाल मुख, किसने डाला रंग।गोरी को सुध-बुध कहाँ, मन यादों के संग।।
 हिल-मिल होली खेलिए, मन का आपा खोय।कल की है किसको खबर, कौन कहाँ पर होय।।
 ११ फरवरी २००८ |