वसंती हवा

वसंत-सी तुम
--अनिल जनविजय

 

मैंने कहा...
अकेला हूँ मैं मॉस्को में
वसंत आया मेरे पास भागकर
साथ लाया टोकरी भर फूल
बच्चों की खिलखिलाहटें
पेड़ों पर हरी पत्तियाँ
मैंने कहा...
अकेला हूँ मैं
याद आई तुम्हारी
प्रेम आया
इच्छा आई मन में तुम्हें देखने की
मैंने कहा...
अकेला नहीं हूँ मैं
स्नेह है तुम्हारा मेरे साथ
लगाव है
तुम्हारे चुंबनों की निशानियाँ हैं
मेरे चेहरे पर अमिट
स्मृति में तुम्हारा चेहरा है
तुम्हारी चंचल शरारतें हैं
मैंने कहा...
अकेला नहीं हूँ मैं
प्रिया है मेरी, मेरे पास
वसंत के रूप में
मेरे साथ।

११ फरवरी २००८

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