कुंडलिया

 

 
गुझिया के रस के बिना, होली है रस हीन
रंगों की बौछार सह, गुझिया खाओ तीन॥
गुझिया खाओ तीन, जरा भी मत शरमाना
शरमाये जो आज, पड़ेगा फिर पछताना॥
दो हाथों में एक, भरो मुँह गाओ रसिया
होली का त्यौहार, तीन तुम खाओ गुझिया॥१॥


मँहगाई की मार से, हत होली उल्लास
गायब हैं पकवान सब, गुझिया बहुत उदास॥
गुझिया बहुत उदास, बहुत है फीकी होली
खाली हैं सब हाथ, कहाँ बच्चों की टोली॥
देवर रंग विहीन, देख चिन्तित भौजाई
गुझिया को रस हीन, बना हँसती मँहगाई॥२॥


"गुझिया क्या हैं चीज माँ, क्या होते पकवान?"
-भोलेपन से पूछता, बच्चा इक नादान॥
बच्चा इक नादान, कर गया माँ को चिन्तित
क्यों गुझिया पकवान, याद आये न किञ्चित
क्यों छूटे संस्कार, पर्व ये सारी ख़ुशियाँ ?
भूलें सारी बात, तलें सब फिर से गुझियाँ॥३॥

- कुन्तल श्रीवास्तव
१ मार्च २०२१

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