यार थोड़ी देर

 

 
यार थोडी देर
सुस्ता लें
चल कडक सी चाय पीते हैं

सुबह से खटते रहे दिन भर
शाम को कुछ चैन से जी लें
लोग जाने क्या
लगे करने
हम चलो
अब चाय ही पी लें

थकन की तह में छिपे हैं जो
देह में लगते पलीते हैं
चल कडक सी चाय पीते हैं

चाय का अपना-पराया क्या
यह निरामय पेय है सबका
हम जिसे
कहते विदेशी थे
वह स्वदेशी
बन गया कब का

वार्ता के
दौर में अक्सर
चाय से होते सुभीते हैं
चल कडक सी चाय पीते हैं

चुस्कियों से
चूमकर प्याली
चेतना तन की
चमकती है
चाय की निष्पक्ष
समता ही
हर किसी
मन में दमकती है

साथ में
दो पल बिताने को
चाय का ले स्वाद जीते हैं
चल कडक सी चाय पीते हैं

- जगदीश पंकज
१ जुलाई २०२०

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