लॉकडाउन रट गया है

 

 
आवश्यक है
तट नदिया के बनकर रहना

हवा प्रदूषित धार समय की
उल्टी पड़ी मचान
खींच रहे हैं हमको भीतर
घर आँगन दालान
आदेशों तक दूर रहो सब
सुख से कहना

धूप दोपहर अकुलाहट में
ढूँढा करती छाँव
ऐसे में ही याद हैं आते
सन्नाटों के गाँव
तोड़ चुप्पियाँ गीत अधर पर
रखकर सुनना

कठिन डगर है पग पग खतरा
अनुशासन की कील
पता नहीं है यात्राओं को
चलना कितने मील?
दौर कठिन है हर पीड़ा को
हँसकर सहना

- जयप्रकाश श्रीवास्तव
१ जून २०२०
 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter