सारा जग भरमाया है

 

 
डोल गए हैं धरती अम्बर
डाल दिए मौसम ने लंगर
सारा जग भरमाया है
अजब रोग इक आया है

सुनी न आहट-दस्तक कोई
सेंध लगाई नगर नगर
चैन सबूरी लूट लिए सब
खेमे गाड़े डगर डगर
विपदा बिगुल बजाया है
रोग अनोखा आया है

बाट जोहते बाग़ बगीचे
भूल गए सब सैर-टहल
बाजारों के रौनक मेले
कहीं कोई न चहल-पहल
सन्नाटों का साया है
रोग कहाँ से आया है

भूल के सारी भागमभाग
रिश्तों की फिर जुड़ी कड़ी
तीन पीढ़ियाँ मिल कर बैठी
हँसी ठिठोली खेल घड़ी

किसने कुछ चेताया है
रोग कहीं कुछ लाया है

- शशि पाधा
१ जून २०२०

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