धूप के पाँव

 

अभी सूरज  

फ़जल ताबिश

 

 

अभी सूरज दरख्तों में छिपा है
मगर साया ज़मीं पर आ गिरा है।

ज़मीं सबको निगलती जा रही है
ज़मीं शायद ज़माने की खुदा है।

हवा मुझको भी इक दिन जीत लेगी
जहाँ माँ का बदन था अब हवा है।

अन्धेरे के लिए आँखें नहीं है
यहाँ बेआँखही कुछ सूझता है।

तुम्हारे और मेरे ग़म अलग हैं
मगर खाली दिखावा भी भला है।

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