मातृभाषा के प्रति


हिन्दी माता को दंडौत

हिन्दी माता को करें, काका कवि दंडौत
बूढ़ी दादी संस्कृत, भाषाओं का स्त्रोत।
भाषाओं का स्त्रोत कि ‘बारह बहुएँ’ जिसकी
आँख मिला पाए उससे, हिम्मत है किसकी ?
ईर्ष्या करके ब्रिटेन ने इक दासी भेजी,
सब बहुओं के सिर पर चढ़ बैठी अँगरेजी।


गोरे- चिट्टे- चुलबुले, अंग- प्रत्यंग प्रत्येक,
मालिक लट्टू हो गया, नाक-नक्श को देख।
नाक-नक्श को देख, डिग गई नीयत उसकी,
स्वामी को समझाय, भला हिम्मत है किसकी ?
अँगरेजी पटरानी बनकर थिरक रही है,
संस्कृत-हिंदी दासी बनकर सिसक रही हैं।


परिचित हैं इस तथ्य से, सभी वर्ग-अपवर्ग,
सास-बहू में मेल हो, घर बन जाए स्वर्ग।
घर बन जाए स्वर्ग, सास की करें हिमायत,
प्रगति करे अवरुद्ध, भला किसकी है ताक़त ?
किंतु फ़िदा दासी पर है ‘गृहस्वामी’ जब तक,
इस घर से वह नहीं निकल सकती है तब तक।

--काका हाथरसी
१० सितंबर २०१२

 

 

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