जनगण की वाणी

वीणावादिनी का उपहार
हिन्दी है जनगण की वाणी जाने सब संसार!

आर्यलोक की संस्कृति को
छंदों में ढाला है
विपतकाल में भी ममता का
धर्म सँभाला है
सखी सरीखा सभी बोलियों से करती व्यवहार!

युग सन्दर्भ नए जीवन का
मर्म समझना है
पिछड़ न जाएँ हमें समय से
आगे बढ़ना है
यही प्रगति की सारथि हमको करना है स्वीकार!

गौरव पाए देश यशस्वी
होगी कालिन्दी
राष्ट्रभाषा का मान अगर
पा जाएगी हिन्दी
ज्ञान और विज्ञान का होगा नित्य नया विस्तार!

विश्व - बंधुता और मनुज
समता की पैरोकार
आज़ादी का स्वर सर्वोदय का
सपना साकार!
आज अमेजन के तट पर भी है जिसकी गुंजार!!

- अश्विनी कुमार विष्णु
८ सितंबर २०१४

 

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