सबको गले लगाती हिंदी

सबको गले
लगाती हिंदी
इसे निभाना आता है

हाँ ये कहाँ
गलत है भाषा
जितनी सीखो उतना कम
सारा विश्व
हमारा अपना
अपनाते हैं सबका गम

लेकिन जिस
माटी ने हमको जन्म दिया
उसका ऋण है
जननी है वो
हम सबकी पहचान कहाँ
अब उस बिन है

हिंदी अपनी
माँ की भाषा
इसमें गाना आता है

रूस चीन
जापान देश सब
अपनी भाषा अपनाते
हम अपनी
भाषा में देखो
बातें करते शरमाते

गाँव शहर
महलों झुग्गी की भाषा अब तो
हिंदी हो
भाषा के झगड़े सुलझें यह
हर माथे की बिंदी हो

हिन्दुस्तानी हम
हिंदी में
पढ़ना लिखना भाता है

- गीता पंडित
८ सितंबर २०१४

 

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