हिंदी दिवस पर

बड़ी तैयारी है
खरीदी जा रही हैं किताबें
हिंदी दिवस पर
बच्चों को बाँटने के लिए
(अब तो बड़े तो बस लिखते हैं
छूट गया है उनका पढ़ना ही)
छप रहे हैं
हिंदी संस्थानों के
पुरस्कार पाने जा रहे
साहित्यकारों के(महिलाओं के तरुणाई
और पुरुषों के बचपन के)रंगीन चित्रों के साथ
पंफ्लेट ,पोस्टर
गली के नुक्कड़ पर
कबाड़ख़ाने के ठीक बगल वाली
जंग खाई प्रिंटिंग मशीन पर
बन रहे हैं
राष्ट्रीयकृत बैंकों के बैनर
हाज़ी रमज़ान आली पेंटर के यहाँ
कार्यालय-कार्यालय
पलटी जा रही हैं फाइलें
हो रही है उनकी सफाई
बाढ़ के बाद भी कुछ साबुत हैं तो
कुछ हैं दीमक खाई भी
केवल कलम के काम में लगे
नाज़ुक हाथों से टीपे हस्ताखर
अंग्रेज़ी टीपों के साथ
चमक उठे हैं स्वर्णाक्षरों में
पढ़े जा रहे हैं हिंदी के भाग्य लेख
अपने -अपने भाग्य विधाताओं के सामने
कुछ घुटरुओं के बल बैठी हैं फाइलें
कुछ मुक्ति कामना में पड़ी हैं निश्चेष्ट
फाइलें जो घोड़ों से तेज़ भागती हैं
फाइलें जो सो जाती हैं तकिया लगाकर
सालोंसाल
सब खुल जाती हैं इन दिनों
केंद्रीय कार्यालयों में
ये फ़ाइलें जिनमें कुछ कमसिन होती हैं
नई-नई खुली बाज़ार-सी बनी होती हैं लक-दक
कुछ स्मार्ट बाबुओं को मुँह लगाती
तन्वंगी होती हैं तो
कुछ ग्रुप डी से पहलवानी करती भीमकाय भी
हिंदी और अंग्रेज़ी भी पिली पड़ी हैं
कबसे अखाड़े में
इनकी अनथक लड़ाई को देख-देख कर
थकी-थकी-सी निढाल
हाँफे जा रही हैं
पसीना चुचुआती फ़ाइलें
सीटी बजा रही हैं पिर्र-पिर्र
१४ सितंबर १९४९ से लेकर आज तक
यह कुश्ती कटी नहीं है

फाइलों ने सिर्फ़ और सिर्फ़ सीटियाँ ही बजाई हैं
कोई फैसला नहीं सुनाया है आज तक
फाइलें ही हैं हिंदी का भाग्य
या फाइलों का भाग्य है हिंदी
इसे बांचेंगे देश-विदेश से आए
प्रकांड ज्योतिषी
पाँच हज़ार रुपए है
सिर्फ हाथ दिखाई
यह कुश्ती कट क्यों नहीं रही है
कहीं भाग्य का चक्कर तो नहीं
सुना है
यही देखने-दिखाने
कराके अंग्रेज़ी में आन लाइन पंजीकरण
रोमन में टीपकर अपना नाम
(एच आई एन डी आई )
हिंदी भी आ रही है
देखना हाथ फैला के बैठ जाएगी
भूखे-प्यासे बैठी रहेगी
तीन-तीन दिनों तक उकड़ूँ
साहित्य, कला और संस्कृति के संगम
'भारत भवन' वाले शहर
'भोपाल' में ।

- गंगा प्रसाद शर्मा    
१ सितंबर २०१५

 

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