पुड़िया मुस्कानों की
 

 

 

चाहतों की नदी किनारे
ख्वाबों का एक किला है,
तमन्नाओं के परकोटे
आहिस्ता से चढ़
फिर ले आना
बाँधकर हौले से
पुड़िया मुस्कानों की
हर रोज़ उसे खोल
एहतियात से
निकाल एक चुटकी
छिड़कनी है
इस संसार पर
कि मुस्कुराहटों में
बीत जाए आने वाला साल
बस इतनी ही ख्वाहिश है
और नहीं चाहिए उपहार।

- भावना सक्सैना    
१ जनवरी २०१९

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