नवलवर्ष-उपहार

 

 

 

आशाओं की पोटली, लादे पुनः सहर्ष।
आया है उपहार ले, नवल-पथिक, नववर्ष।।

उत्सुकता हर आँख में, क्या है अबकी बार।
दिन-दिन खुलता जायगा, नवलवर्ष-उपहार।।

अधरों पर है प्रार्थना, नैनों में है आस।
नवल-वर्षीय छंद में, खुशियाँ हों अनुप्रास।।

माली हर्षे फूल सँग, खुशी देहरी-द्वार।
नये साल! लाना जरा, रंग भरे उपहार।।

कहीं मेघ, दिनकर कहीं, कहीं धनक के रंग।
नवलवर्ष! रखना तनिक, खुशहाली-भू-संग।।

आगत का स्वागत करें, वर्तमान ही सत्य।
कौन जानता कौन क्षण, आगत बने अमृत्य।।

- परमजीत कौर 'रीत'    
१ जनवरी २०१९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter