नववर्ष मंगलमय हो
 

 

 

 

यादों की लंबी देहरी को
लाँघ गया चुपचाप!
सुनने को हैं आतुर उसकी
अब मधुरिम पदचाप

राजनीति के महासमर में
छिड़ी हुई थी रार
मजबूरी भी ही थी शायद
या फिर थे लाचार
मन ही मन अब करना होगा
शांति मंत्र का जाप

कभी नहीं कुछ हासिल होता
दे अपनों को मात
बना रहे बस भाईचारा
हो जीवन सौगात
बहे कहीं न गंध बारूदी
हो ना करूण विलाप

परिवर्तन से प्रगति होगी
विकसित होगा देश
वाद विवादों के उलझन से
हो विमुक्त परिवेश!
न्याय,मान,समता के हक में
देंगे हरदम थाप

मौसम लेगा करवट होगा
आशा का संचार
स्वस्तिक चिन्हों पर मंगलघट
स्वागत को तैयार
नये सूर्य के प्रथम रश्मि से
मिट जायेंगे पाप

विनय यही है सदा ईश से
देना तुम आशीष
गर्वोन्नत हो सदा विश्व में
भारत माँ का शीश
नये साल में अब नूतन हों
सारे क्रिया कलाप

- श्रीधर आचार्य "शील"     
१ जनवरी २०१९

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