आना जी नये वर्ष
 

 

 

 

आना जी नये वर्ष !
आना !
जल-थल आकाश गुँजा
नेह का तराना !!

क्षण-क्षण हर ओर रहें
मधुऋतु की तिथियाँ
औंधे मुँह पट्ट पड़ें
विषम परिस्थितियाँ
आना जी दिव्य दर्श !
आना !
पीलापन गत पतझर
हरियाली लाना !!
आना जी नये वर्ष आना !

बाँहों में बाँहें हों
भेदभाव कुल भागे
सहमत हों ना, फिर भी,
राग-बोध ही जागे
आना जी सर्व हर्ष !
आना !
सँकरा पथ हर अन्तर
विस्तृत कर जाना !!

आना जी नये वर्ष आना !

- सुभाष वसिष्ठ      
१ जनवरी २०१९

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