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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 


पिता 

पहले बहुत मुखर रहते थे, भर देते थे जोश पिता
अब तो बस खोए-खोए-से, रहते हैं खामोश पिता

जिनको पाला-पोसा वे सब, निकले नमकहराम बड़े
सोच-सोच कर बातें सारी हो जाते बेहोश पिता

काश हमेशा बच्चे रहते, बने यहाँ हम डैडी क्यों
अपने में ही मस्त-मस्त हैं, दूर हुए कई कोस पिता

इनका भी इक दौर था सबसे कितना ये बतियाते थे
अब तो है केवल तन्हाई, किसको दे फिर दोष पिता

बचपन में जब गिर जाते थे कितना रोया करते थे
चुप होते थे उसी घड़ी जब, लेते थे आगोश पिता

दुनिया अपने ढर्रे पर है, कल कितना अच्छा था वो
रिश्तों में बढ़ती खुदगर्जी, रहे बैठ कर कोस पिता

कभी नहीं फरमाइश करते, पढ़ सकते तो पढ़ लो मन
जितना भी मिल जाये उसमें, कर लेते संतोष पिता

हाथ हमेशा तंग रहा पर पता नहीं लगने पाया
हम बच्चों की खातिर हरदम रहते 'अक्षय-कोष' पिता

बच्चों को सब कुछ दे डाला, अब तो कुछ भी पास नहीं
कभी-कभी 'अपनी गलती' पर करते हैं अफसोस पिता

नया ज़माना, नया दौर है सबका है अपना परिवार
मात-पिता गायब सूची से किसको दे अब दोष पिता

- गिरीश पंकज
१५ सिंतंबर २०१४

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