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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 

पिता

जीवन की कर्मभूमि में
जब कभी
खुद को पाया
मैंने टूटा हुआ
असफल और हारा हुआ
पिता
तुम आये
थपथपाई मेरी पीठ
दिया सहारा और विश्वास
जगाया मुझमें आत्मविश्वास
और दिलाया भरोसा
कि मैं .....
लड़ सकती हूँ
कर्मक्षेत्र में आगे
बढ़ सकती हूँ
हर धर्मयुद्ध में
विजयी हो सकती हूँ
और फिर!
रख दी थी
मेरे कमजोर हाथों में
शुभ और संबल से भरी
छोटी सी गणपति की मूर्ति

पिता!
आज भी ऐसा ही एक
धर्मयुद्ध लड़ रही हूँ
कर्मक्षेत्र में
उसूलों और मूल्यों को रौंदते
अन्याय से भिड़ रही हूँ

जानती हूँ!
तुम हो मेरे साथ
तो कायम है मुझमें आत्मविश्वास
खुद से किया है एक वादा
सफल होने का किया है इरादा

पिता!
सुन् रहे हो न
गूँज हौसलों की
विजय की
देखो चित पड़ा है अन्याय
अब कह सकती हूँ
जीत का जश्न है
उत्सव है
पिता के आशीर्वाद के रूप में
मेरे लिए
यही विजय पर्व है!

- आभा खरे
१५ सिंतंबर २०१४

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