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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 

बाबू जी

बाबू जी बचपन के
किसी कोने में
यादों की परछाई में से झाँकते हैं
यही कहीं टहलते हैं
मेरे घर के दलान में
मेरे कॉलेज की डिग्रियों में
मेरी उदासी में
मेरे पीछे खड़े
मेरी ही प्रतिच्छाया से कदम मिलाते
चलते हैं साथ साथ

सामने दीवार पर लगी
तस्वीर से उभर कर
सामने बैठ
कितना बतियाते हैं
कितने मसले सुलझा जाते हैं
बस वो ही ऊँची सी हँसी
मीठी सी झिडकी दे
फिर किसी ऋषि की मुद्रा में कैद हो
आसन लगा बैठ जाते हैं तस्वीर में

बाबूजी पुराने ख्यालों के थे
अपने ही उसूलों को जीते
अनुशासन में सीते
जब लोगों से मिलते
उन्हीं के हो जाते
उन्हीं के गीत गाते

उनका दिल भी था
महकती खुशबूओं सा
अजनबी से मिलते
ऐतबार कर जाते
फिर धोखा खाते
झुँझलाते खुद पर ,हम पर भी
आहत जो हो जाते

बस ऐसे ही थे बाबू जी मेरे
जो आज भी रहते हैं
मेरे साथ, मेरी किताबों में
मेरी कविताओं में
सोते जागते हैं, मेरे साथ
वो कहीं नहीं जाते
यहीं रहते हैं, कहीं मेरे आस पास।

- मंजुल भटनागर
१५ सिंतंबर २०१४

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