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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 


उँगलियाँ पकड़े हुए 

बहुत गहरे हैं पिता
पेडों से भी बड़े
उँगलियाँ
पकड़े हुए हम
पाँव में उनके खड़े।

भोर के हैं उगे सूरज
साँझ-सँझवाती,
घर के हर कोने में उनके
गंध की थाती।

आँखों में मीठी छुअन
प्यास में
गीले घड़े।

पिता घर हैं बड़ी छत हैं
डूब में है नाव,
नहीं दिखती
ठेस उनकी
नहीं बहते घाव।

दुख गुमाए पिता
सुखों से
भी लड़े।

धार हँसिए की रहे
खलिहान में रीते,
ज़िन्दगी के
चार दिन
कुछ इस तरह बीते।

मोड़ कितने मील आए
पाँव से
अपने अड़े।

- अनूप अशेष
१५ सिंतंबर २०१४

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