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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 

बाबू जी की एक तर्जनी

बाबू जी की
एक तर्जनी
कितना बड़ा सहारा थी
मेले-ठेले में जाना हो
या हो नुक्कड़ का बाजार
सड़क अमीनाबाद सरीखी
हो जाती थी क्षण में पार
उँगली पकड़े रहते
जब तक
अपनी तो पौ बारा थी

स्वर-व्यंजन पहचान कराना
या फिर गिनती और पहाड़े
उँगली कभी रही न पीछे
गरमी पड़ती हो या जाड़े
चूक पढ़ाई में
होती तो
उँगली चढ़ता पारा थी

कम्प्यूटर का युग ना था वो
बाबू गणक कहाँ से लाएँ
उँगली पर ही कर लेते थे
दफ्तर की सारी गणनाएँ
उँगली
सिर्फ नहीं थी उँगली,
घर का वही गुजारा थी

- ओमप्रकाश तिवारी
१५ सिंतंबर २०१४

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