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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 

पिता जी

मुझे नहीं मालूम
पिता जी कैसे थे

कभी न मैंने उनको देखा
प्यार नहीं पाया उनका
जब दुनिया में, मैं आया तो
रहा नहीं साया उनका
कहते हैं सब लोग
सरस फल जैसे थे

कैसे, क्या मैं लिख पाऊँगा
उनपर जिन्हें नहीं देखा
कैसे पार करूँगा बोलो
भावों की लक्ष्मण रेखा।
मिट जाती हाँ प्यास
कलश जल जैसे थे

फूट पड़ा झरना आँखों से
इतना ही बस लिख पाया
कलम बैठकर रोयी दिनभर
उसे देख मैं पछताया।
करते हैं सब याद
पिताजी ऐसे थे

- पवन प्रताप सिंह 'पवन'
१५ सिंतंबर २०१४

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