राम नवमी

 
रोली, चन्दन, चावल, बाती
घंटी-शंख-जल-फूल-माला...
चार बालियाँ गेहूँ-बाजरे की लेकर
आखों में भर कर श्रद्धा की ज्योति
मन में ले कर पवित्र पुकार,
दूधिया पावों से ...
किसी प्रथा की तरह चलती हुई
सरयू घाट पे उतरी है जो--
माँ कहती है -
''गर्भवती'' है वो...'' कौशल्या'' है -
तभी
भोज की छाल पर
तुलसी ने लिख दिया ''राम ''
बहा दिया शताब्दियों की अविरल धारा में ...!!

गंगा सी आज भी बह रही है ...
गूँज रही है
धरा पर राम नाम की सरगम !!

संदीप रावत
२२ अप्रैल २०१३

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