रामायण की चौपाई

 
याद हुई मेरी गुड़िया को रामायण
की चौपाई

सौंधी मिट्टी की खुशबू
पीढियाँ बदल यों आती है
जैसे पोती दादी माँ के
रंगों में रंग जाती है
संस्कार की वही सुरभि मेरी बगिया ने पाई

मन्त्र सजे नन्हे होठों पर
आँखों में भोली सी आस
शबरी के बेरों में जैसे
भक्ति भाव की भरी मिठास
मर्यादा संकल्प शक्ति सब विरसे में
हमने पाई

इन बच्चों से स्वयम राम को
होंगी कितनी आशाएँ
चाँद से बच्चों के मुख पर हों
सूर्यवंश की गाथाएँ
सुन यह सूरज, चाँद सितारे, धरती
माँ भी हर्षाई

इन बच्चों में हमें राम की
झलक देखनी आ जाए
जीवन भर का कोलाहल फिर
सात सुरों को पा जाये
तब हो जीवन अपना ऐसा जैसे
सरगम शहनाई

-सुवर्णा दीक्षित
२२ अप्रैल २०१३

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