वो बादल कब आएँगे

वर्षा मंगल
 

कितना अच्छा लगता है
बादल बच्चा लगता है
निश्छल निर्मल चंचल
कोमल सरल धवल
गगन की झील में मगन कमल सा तिरता रहता है
हवा की अंगुली पकड़ कर फिरता रहता है

कभी उजले धुले शंख सा
कभी सफ़ेद खुले पंख सा
कभी खरगोश सा और कभी मृग छौने सा
कभी संगमरमर के सुन्दर खिलौने सा
कभी कपास सा तो कभी बर्फ सा
कबी मोर सा तो कभी सर्प सा

कभी इधर कभी उधर उड़ता है
कभी टूटता है बिखरता है फिर जुड़ता है
सूरज के मुंह पर रख देता है अपनी हथेलियाँ
धरती से पूछता है धुप छहंव की पहेलियाँ
अपने हाल में अति व्यस्त
भोला मासूम और मस्त
मन का सच्चा लगता है
कितना अच्छा लगता है
बादल बच्चा लगता है

और यही बादल जब मिलता है दtसरे बादल में
बिल्कुल ही बदल जाता है एक पल में
सरलता चंचलता धवलता खो देता है
नये बादल के संग उसी के अनुरूप हो लेता है
बनाने लगती है अब इसकी नई पहचान
बच्चा बादल हो गया है जवान
अब ये लाल पीला होने लगा है
जिद्दी और हठीला होनी लगा है

अब इसे उमडना -
घुमड़ना
कड़कड़ाना
गड़गड़ाना
डराना और धमकाना आ गया है
बिजली की
तलवारें चमकाना आ गया है

पुरवैया अब इसे रिझाने लगी है
पछुआ भी दिल धड़कने लगी है
साथ अपने ये नई हवाएँ घुमाने लगी हैं
आपस में इन्हें टकराने लगी हैं
तो लड़ -लड़ कर मर जायेंगे बादल
तब जाकर कहीं जल बरसाएँगे बादल
किन्तु बादलों को कहाँ जाना है
कहाँ जल बरसाना है
ये तो इन हवाओं को ही तो बताना है
किन्तु मित्रों हवाएं

प्रदूषण से मैली विषैली और गन्दी हो गई हैं
ये बादलों को क्या सही रास्ता दिखाएँगी
ये तो खुद जवानी में अंधी हो गई हैं
इसीलिए जहाँ जल बरसना चाहिए नहीं बरसता है

धरती सूखी रह जाती है
लोग भूखे मरते हैं
हर जीव जल को तरसता है
अब नहीं रहा यह एकदम सच्चा बादल
अब नहीं है ये किसी बच्चे जैसा बादल
जाने कब आएँगे वो अच्छे बादल
प्यारे-प्यारे सच्चे बादल

जो धरती को नहलायेंगे
फसलों को लहलायेंगे हर मन को बहलाएँगें
और सब जगह पर जल बरसाएँगे
वो बादल कब आएँगें ? वो बादल कब आएँगें ??

लक्ष्मीदत्त तरुण
३० जुलाई २०१२

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