दफ्तर में

वर्षा मंगल
 

दफ्तर में हवा नमी बादल एकत्र
बारिश ने टाइप किया मौसम का पत्र

झिमिर झिमिर लिखना था
तिमिर साथ लिखा
सूरज सा दिखना था
बादल से छुपा
पत्तों से झरना था
बूँदों को झुक झुक कर
धारों को बहना था
खिड़की पर रुक रुक कर
बारिश की हेठी थी नहीं सुना कुछ भी
बिखरे बौछारों के अक्षर सर्वत्र
बूँदों से भीग गया
मौसम का पत्र

झींगुर बस लिखना था
दादुर भी लिखा
मोर मोर आँगन में
आसमान घटा
बिजली की संगत कर
दौड़ रही इधर उधर
चमक दमक याद रही
भूल गई अपना घर
देखो तो दीवानी मौसम भी लाँघ गई
भूलभाल तिथि मास होरा नक्षत्र
भटक रहा इधर उधर
मौसम का पत्र

आग आग सड़कों पर
बूँदों को लिखा
जल्दी में धारों को
कारों पर बिछा
कूद गई सड़कों पर
ट्रैफिक के तोड़ नियम
नहीं याद इसको कुछ
मौसम के कहे वचन
बौराई ऐसी कि गली गली नाच रही
भूलकर हवाओं में उड़ता परिपत्र
अरे कहाँ चला गया
मौसम का पत्र?

-पूर्णिमा वर्मन
३० जुलाई २०१२

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