बसंत
              - रंजना गुप्ता

 

बागों में उतरा बसंत है
साँसों में ठहरा बसंत है
सुनता नही किसी का कहना
सदियों से बहरा बसंत है

मनमौजी भवँरे की गुन गुन
ऋतुओं के पायल की रुन झुन
रूप गन्ध की हर डाली पर
ज्यों देता पहरा बसंत है

सघन कन्दराओं में छुपता
बन उपवन में लुकता फिरता
बंजारा पागल बादल या
आवारा चेहरा बसंत है

कली कली की नन्ही प्याली
घोल घोल मदिरा की लाली
तितली कोयल आम टिकोरे
रस रस में लहरा बसंत है

नव किसलय के झुमके पहने
धरती के दिन हुए सुनहरे
माथे अपने बाँध रहा है
हरा भरा सेहरा बसंत है

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