वसंती हवा

आज होली है
नरेंद्र नाथ टंडन ''साहिल लखनवी''

 

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चाँद की रात, दर पे सजी रंगोली है।
न सता, आ भी जा, कि आज होली है।।

हमने माना, बेइत्तिफ़ाक़ी दर्मियाँ हमदम।
बीच का रस्ता बना, कि आज होली है।।

तल्ख़ियों को भूल जा, तू ताख़ पे रख कर।
आ गले लग जा, कि आज होली है।।

दुश्मनी को ख़ाक़ में तू डाल कर।
पास मेरे आ, कि आज होली है।।

मौसम हुआ बसंती, खलिहान भी भरे भरे।
ज़रा-सी भाँग चढ़ा, कि आज होली है।।

1 मार्च 2007

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