विजयदशमी की कविताओं का संकलन
 

 

समस्याओं के दशानन


त्रेता युग में राम ने, किया दशानन अंत
रोज नए रावण यहाँ, फिरते रूप अनंत


खूब करें तैयारियाँ, आते हैं जब पर्व
सब को सम खुशियाँ मिले, रीति-नियम पर गर्व


मन के अन्दर बस रहे, जो सारे कुविचार
काम क्रोध मद लोभ का, हो तुरंत प्रतिकार


पूजित हो घर में सदा, कन्यायें औ नार
वृद्धों को आदर मिले, करें न अत्याचार


प्रतिदिन उत्सव सा यहाँ, सुख-संपत्ति संयोग
आतंकों से हीन हो, सकल विश्व के लोग


अच्छाई से हार के,  सदा बुरे का अंत
राम और रावण यहीं, करते युद्ध अनंत

– ज्योतिर्मयी पंत


 

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