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पत्र व्यवहार का पता

16. 12. 2007  

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कोइलिया न बोली

मंजर गए आम
कोइलिया न बोली

बूटों के अपने
हाथ उठाए
धरती
वसंती-सखी को बुलाए
पड़े हैं सब काम
कोइलिया न बोली

मंजर गए आम
कोइलिया न बोली

पाकर नीम ने
पात गिराए
बात अपत की
हवा फैलाए
कहाँ गए श्याम
कोइलिया न बोली।

मंजर गए आम
कोइलिया न बोली

--त्रिलोचन शास्त्री
 

इस सप्ताह

गौरव ग्राम में-

अंजुमन में-

कविताओं में-

देशांतर में-

क्षणिकाओं में-

पिछले सप्ताह
9 दिसंबर 2007 के अंक में

गीतों में-
डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र

अंजुमन में-
क़ैश जौनपुरी

नई हवा में-
संजय सागर

हाइकु में-
डॉ. जगदीश व्योम

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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