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अभिव्यक्ति  ८. ९. २००८

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धूप की चिरैया

 

1
उड़ती है पार-द्वार
धूप की चिरैया।
.
पानी के
दर्पण में,
बिंब नया उभरा,
बिखर गया
दूर-पास, एक-एक कतरा।
पलकों-सी मार गई
धूप की चिरैया।
.
पूरब में
कुंकुम का,
थाल सजा-सँवरा,
किरणों-सी दुलहन का,
रूप और निखरा।
आँगना गई बुहार
धूप की चिरैया।
.
यहाँ-वहाँ,
इधर-उधर,
फुदक-फुदक नाचे,
सुख-दुख की आँखों के,
शब्दों को बाँचे।
रोज़ पढ़े समाचार
धूप की चिरैया।
.
-डॉ. तारादत्त निर्विरोध

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

पुनर्पाठ में-

दिशांतर में-

श्रद्धांजलि में-

पिछले सप्ताह
१ सितंबर २००८ के अंक में

गीतों में-
श्याम अंकुर

अंजुमन में-
सुरेशचन्द्र 'शौक़'

छंदमुक्त में-
विजय राठौर

पुनर्पाठ में-
मैथिलीशरण गुप्त

हाइकु में-
झीणा भाई देसाई `स्नेह रश्मि'

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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