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१२. १२. २०११

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शहर

सूरज फिर
से हुआ लाल है

दिक्कतों में है शहर
अब पत्थरों में है शहर

शहर को
कुछ भी कहो
यह शहर बदलेगा नहीं
जिन्दगी मैली कुचैली
शहर अब लेगा नहीं
कुछ बड़ी
ऊँचाई पर
उम्दा घरों में है शहर

सड़क
पर चलते हुए
कुछ पड़ा मिलता है नहीं
हैं बहुत चीजें मगर
यह मन मचलता है नहीं
सैकड़ों
बदचलन हैं
उन सैकड़ों में हैं शहर

शहर को
झूठा कहो तो
गाँव कुछ शरमाएगा
शहर से सीखा हुआ ही
गाँव चलकर आएगा
गाँव खंडहर
हो गए
उन खंडहरों में है शहर

--रमा कान्त

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
   
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