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२३. २. २०१५-

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उठो जमूरे

 

उठो जमूरे कर लें पूरे
खेल अधूरे

राजा का दरबार लगाएँ
निर्दोषों का दोष बताएँ
अन्यायी को न्याय दिलाएँ
पूरे पूरे

उठो जमूरे कर लें पूरे
खेल अधूरे

भले जले ना उनके चूल्हे
भूखों से चालान वसूलें
मस्त रहें फिर खाकर सोयें
भाँग धतूरे

उठो जमूरे कर लें पूरे
खेल अधूरे

लोग बिजूके आज सड़क पर
कौन लड़ेगा इनके हक पर
दर्शक बहरे हम क्यों अपना
राग बिसूरें

उठो जमूरे कर लें पूरे
खेल अधूरे

- प्रदीप कांत

 

इस सप्ताह

गीतों में-

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प्रदीप कांत

अंजुमन में-

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कल्पना रामानी

छंदमुक्त में-

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रश्मि भारद्वाज

दोहों में-

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विनोद पांडेय

पुनर्पाठ में-

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सुमन बहुगुणा
 


 

पिछले सप्ताह
१६ फरवरी ९०१५ के अंक में

गीतों में-
अनुराग तिवारी

अंजुमन में-
राकेश मधुर

छंदमुक्त में-
सविता मिश्रा

क्षणिकाओं में-
संध्या सिंह

पुनर्पाठ में-
सत्यवान शर्मा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी