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ज्ञानराज माणिकप्रभु की
मौसमी गज़ल

 

 

  क्या करें

हैं मौसमे गर्मी से परेशान क्या करें
बरसा रहा है आग आसमान क्या करें

ज़िन्दा हैं मगर है लगी आग जिस्म में
शमशान बन गया है हर मकान क्या करें

परेशां हैं पसीने से और खुश्क है गला
जलता हो तन बदन तो दिलोजान क्या करें

दर खुले हुए हैं दरीचे खुले हुए
हवा ही न गर चले तो हवादान क्या करें

वीरान हो गए हैं गुलिस्तान औ' चमन
लगी आग बाग में तो बागबान क्या करें

मस्जिद में चैन है न सुकूं बुतकदे में है
हैरान हैं हिन्दू औ' मुसलमान क्या करें

बुत सुलग रहे औ' शिवाले हैं तप रहे
भगवान तो भगवान हैं इन्सान क्या करें

करने को कुछ नहीं है सिवा 'उफ' औ' 'आह' के
ऐसे में सिवा शायरी के ज्ञान क्या करें
 

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