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राजेन्द्र वर्मा

जन्म : १ सितंबर, १९४९,

प्रकाशित कृतियाँ-
‘कहीं कुछ जल रहा है!’ ‘तोड़ दो अपनी उदासी’ (कविता संग्रह) और ‘परिसंवाद’ (हरियाणा राज्य के २० साहित्यकारों के साक्षात्कार)। ‘कहीं कुछ जल रहा है!’ वर्ष २००८-९ में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत। ‘मानुष गाथा शतक’

ईमेल- rajendrasarthi123@gmail.com

 

सद्गुण प्रतिभा योग्यता

सद्गुण, प्रतिभा, योग्यता, बैठे हैं भयभीत।
धन से दुर्जन ले रहे, सभी मोर्चे जीत।

आँखों में यदि नीर है, जग सुन्दर, शिव, सत्य।
चुकते ही जल आँख से, जग रिश्ते सब मृत्य।

भ्रष्ट व्यवस्था पी रही, जनमानस का खून।
मुसिफ के बस में नहीं, बदल सके कानून।

दुख-सुख को तो मानिये, जीवन में महमान।
औचक ही हो आगमन, औचक ही प्रस्थान।

राजनीति के दूत सब, बाँटें झूठी आस।
सत्ता की चाहत लिए, गाएँ भीमपलास।

दिल दरिया में डूबना, ना जानें जो लोग।
वे क्या जानें प्रेम का कितना मीठा रोग।

काँटों में हँसता हुआ, दिखता तुम्हें गुलाब।
कैसे जीता वह चुभन, सीखें आप जनाब।

शब्द-शब्द में पीर है, शब्द-शब्द में धीर।
शब्द बनें संजीवनी, शब्द दहकते तीर।

दुनिया का यह चलन है, जिसमें जितनी धार।
उसको उतने क्षेत्र का, माने मंसबदार।

१६ मार्च २०१५

 

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