| अनुभूति में 
					
					हंसराज सिंह वर्मा 'कल्पहंस' की रचनाएँ—
 छंदमुक्त में—
 आजादी
 बचपन की गुहार
 नव–वर्ष
 मुठ्ठी भर मिट्टी
 होली की कामना
 शहर और आदमी
 सिंधु पार
 
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                  तुम कभी वहाँ आना
 तुम कभी वहाँ आना,
 मैं वही मिलूँगा !
 
 मैं कभी तुम्हारे लिये, यहाँ आया था,
 मैं आज तुम्हारे लिये, वहाँ जाता हूँ
 मैं यहाँ, वहाँ या जहाँ रहूँ, मेरा क्या
 मैं तुमको गाता, खुद को दुहराता हूँ
 तुम यहाँ खोजते हो,
 मैं नहीं मिलूँगा !
 
 ये शब्द, रूप, रस, गन्ध, यहाँ के कैसे ?
 साँसों में बेहद घुटन, भरे देते हैं,
 ऊबन की सीमा पर, ऐसा लगता है
 जैसे मुरझा तो गये, झरे लेते हैं.
 तुम व्यर्थ सोचते हो,
 मैं यही मिलूँगा !
 
 मैं वहाँ मिलूँगा, जहाँ निषेध नहीं है
 मोहक मुसकानें हैं, स्वर की धारा है,
 शब्दों में मधुर सुगन्ध, आँख में पानी
 अब तक न बुद्धि से, जहाँ हृदय हारा है.
 मैं सुमन-वंश का हूँ,
 हर कहीं खिलूँगा !
 ८ अक्तूबर 
					२०१२ |