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 कमलेश कुमार शुक्ल कमल
के तीन घनाक्षरी छंद

  सरस्वती वंदना

सरस सलिल सर मध्य श्वेत अंबुज पे,
श्वेत कमलासिनी विराजे मातु भारती
मेधा रूप ममतामयी माँ मंजु मानस में,
दोनों कर मध्य तार वीणा झनकारती
दास पे दया की दृष्टि दीजे कर एक बार,
दास की पुकार मातु आपको पुकारती
कंठ में विराजि मातु नाव को लगाओ पार,
ज्ञान की विधात्री माँ उतारे दास आरती

देश चिंतन

राम नाम पे भी आज हो री है राजनीति
वन्देमातरम् पे भी प्रश्नचिह्न भारी है
राष्ट्र की प्रतिष्ठा भी लगी है आज दाँव पर,
मातु भारती के नयनों से नीर जारी है
बैठे विषधर फन काढ़े हैं हजारों यहाँ,
दिल्ली वाली संसद भी आपनों से हारी है
रामराज्य लाने वाला बापू रो रहा है आज
प्रजातन्त्र पर भ्रष्टाचार की सवारी है

जोड़ तोड़ तुष्टिवाद वाली राजनीति छोड़
समरसता की राजनीति अपनाईये
जम्मू कश्मीर से सुदूर सिन्धु तट तक,
आन बान शान से तिरंगा फहराइये
माँ की अस्मिता पे आँच आने नहीं पाए कभी,
ऐसी राष्ट्र भावना को सब में जगाइये
खंड खंड होने के कगार पे खड़ा है राष्ट्र,
खंड खंड होने से स्वदेश को बचाइये

२२ जुलाई २०१३

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