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अनुपमा त्रिपाठी सुकृति

 


 

 

 

 

हाइकु


प्रीत शृंगार
नवल अलंकार
गीत लहके



भोर सुहानी
कहती है कहानी
शब्द संवारे



पँख फैलाये
उड़ चला ये मन
झूमे मगन 



रैन बसेरा
क्यों मन लगाए रे
दुनिया मेला



लिखते चलो
जीवन अभिलाषा
मन की भाषा



आई बहार
सकल बन फूले 
रंग बिखरे





पुष्प धवल 
सुगन्धित बयार 
खिले संसार 



हुआ सवेरा
जागी फिर आशाएँ
खिली दिशाएँ



पापीहा बोले
भेद जिया के खोले
चित यों डोले

१०

आई बहार
सकल बन फूले
छाई बहार

१ सितंबर २०२३

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