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राजेंद्र तिवारी के
छह हाइकु
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१६ मार्च २००६

  सर्दी अलाव
शरदमहोत्सव
मनभावन

ओस की बूंद
घास की चादर
खुला आकाश

हे रे मानव
असंवेदनशील
सोच परख

 
  देखो दुनिया
भूख से अधमरी
नंगा समाज

कौन सोचेगा
अभिव्यक्ति से दूर
रख स्वयं को

दर्द की रात
बिस्तर की सिलवटें
बयां करती

 

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