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डॉ. रामाकांत श्रीवास्तव

जन्म– १५ जुलाई १९२१ को ग्राम पूरे मोहनलाल‚ लालगंज‚ रायबरेली (उ.प्र.) में।

सृजन–
सन १९३५ से साहित्य सृजन में अनवरत संलग्न। अब तक २० पुस्तकें प्रकाशित।

व्यवसाय–
सन १९४४ से अब तक पत्रकारिता और संपादन को व्यवसाय एवं मिशन के रूप में जीते हुए दैनिक‚ साप्ताहिक‚ मासिक पत्रों के अतिरिक्त हिन्दी समित्रि उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में प्रधान संपादक (राजपत्रित) के रूप में दर्जनों विविध विषयक संदर्भ एवं मानक ग्रंथों का संपादन।

सम्प्रति–
'भारतीय मनीषा' पत्रिका का संपादन।

ई मेल-bhagwatsaranagarwala@indiatimes.com    
 

 

हाइकु

गयी है पिकी
प्रतीक्षारता पुनः
आम्र शाखाएँ।

गाता है भोर
प्रणयसिक्त गीत
उषा मुग्ध।

गये शिकारी
खोज रही हिरनी
निज हिरना।

महुआ खड़ा
बिछा श्वेत चादर
किसे जोहता।

किसकी व्यथा
छा गयी बन घटा
नभ है घिरा।

साँझ का तारा
किसे खोजने आया
अमा निशा में।

कौन संदेशा
ले पवन आया है
सुनने तो दो।

रची–बसी हो
मेहंदी की गंध में
याद आती हो।

खुल गये हैं
’पी कहाँ पुकार से
पृष्ठ पिछले।



जलाता सदा
सँझवाती बिरिया
दीप यादों का।

कटे बिरिछ
गाँव की दुपहर
खोजती साया।

गाँव मुझको
मैं ढूँढ़ता गाँव को
खो गये दोनों।

वर्षा की साँझ
बजाते शहनाई
छिपे झींगुर।

बजाने आयी
पिकी छिप बाँसुरी
अमराई में।

फूल खिलता
महक मुरझाता
सपन बनता।

बड़े सवेरे
उठ जातीं चिड़ियाँ
जगाता कौन।

आये कोकिल
धुन वंशी की गूँजे
बौर महकें।

१६ जुलाई २००५

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