अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

रामकृष्ण विकलेश

  हाइकु

काले मेघों में
खींच रहे बगुले
उज्ज्वल रेखा।

सूखे ठूँठ में
वर्षा ने उगा दी है
हरी कोंपल।

धरा की धूल
छूने लगी आकाश
हवा के साथ।

औरों के दीप
हमें देंगे उजाला
हम किसे दें ?

धूप के हाथों
लुटती रही गंध
खिले फूल की।

ओस की बूँद
दूब की नोक पर
हीरे की कनी।

उषा ने बाँधी
क्षितिज के हाथों में
सूर्य की राखी।

16 jaUna 2005

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter